कौन जोगी

Genre: Thriller | Suspense

कौन जोगी
जोगी। रमन्ना। सुरजीत। तीन दोस्त जो एक ही फ़्लैट में किराये से रहते थे। लेकिन एक दिन जोगी रहस्यमय तरीक़े से ग़ायब हो गया।
जहाँ सुरजीत परेशान था कि जोगी कहीं मिल नहीं रहा है, वहीँ रमन्ना ये मानने को तैयार ही नहीं था कि जोगी नाम का कोई शख़्स कभी उनके साथ रहता भी था। आखिर क्या माज़रा था? क्या रमन्ना झूठ बोल रहा था या सुरजीत का दिमाग़ किसी भ्रमजाल में फँस गया था?
एक दोस्त की दूसरे दोस्त को ढूँढ़ने की एक रोमांचक कहानी जो एक ऐसे भयावह अंत पर आकर ख़त्म हुई जो शायद कल्पनाओं से भी परे था।

Chapter 1

ऑफिस से आते ही सुरजीत ने अपना लैपटॉप का बैग सोफे पर फेंका और वहीँ पास् में पड़े पलंग पर पसर गया।
आज उसके सर में माइग्रेन का दर्द फिर से शुरू हो गया था।
उसने आवाज़ लगाई "अरे जोगी !! भाई एक कप चाय बन दे सर में दर्द हो रहा  है"

"कौन जोगी ?" बगल के कमरे से रमन्ना निकलते हुए बोला।

 सुरजीत सिंह एक आईटी कंपनी में इंजीनियर कार्यरत था और रमन्ना उसका रूममेट जो कि एक सेल्स एग्जीक्यूटिव था।

वे लोग सेतुग्राम नाम के एक छोटे से लेकिन आधुनिक शहर में रहते थे जहाँ पर सुख सुविधाओं  के साधन प्रचुर मात्रा में थे।

हरियाली की कमी थी क्योंकि हर जगह बड़े बड़े मॉल्स और करीने से बनायीं गयी काफी सुन्दर कॉलोनीज थी। उन्होंने जो फ्लैट किराए पर ले रखा था वो कल्पिनगर नाम के एरिया में था।

 "भाई मैं अभी मज़ाक के मूड में नहीं हूँ बिलकुल" सुरजीत घूर के बोला।

"चाय में बना देता हूँ, जोगी जोगी मत कर " कह कर रमन्ना किचन में घुस गया और सुरजीत उसे घूर के देखता रहा और फिर करवट लेके पसर गया।

रमन्ना जब चाय बना के लाया तो देखा की सुरजीत घोड़े बेच के सोया पड़ा था, "लगता है  गहरी नींद में सो गया है" रमन्ना ने सोचा और उसे सोते रहने दिया।

पूरे ४ घंटे बाद जब सुरजीत उठा तो रात के ११ बज रहे थे और उसका सर दर्द अब बिलकुल ठीक था और वो काफी फ्रेश महसूस कर रहा था। उसने उठ के देखा तो उसके कमरे का जीरो वाट का बल्ब जल रहा था।

"काफी गहरी नींद आई, लगता है जोगी और रमन्ना सो गए हैं " कह कर वो अपने कमरे से हॉल में आया। वो एक २ BHK फ्लैट था, जिसमे आमने सामने २ कमरे थे और बीच में बड़ा सा हाल था। हाल के साइड  में  ही ओपन किचन थी।

किचन की लाइट  जल रही थी जिससे हॉल में भी पर्याप्त प्रकाश आ रहा था.उसने आगे बढ़ के दूसरे कमरे में झाँका लेकिन ढंग  से कुछ देख नहीं पाया क्योंकि उस  कमरे में की लाइट नहीं जल रही थी जिससे कमरे में काफी अँधेरा था।

"लगता है दोनों सो गए हैं " कह कर वो किचन की तरफ बढ़ गया।

चूँकि सुरजीत ऑफिस से आते ही सो गया था और उसने कुछ खाया पिया भी नहीं था इसलिए उसे काफी जोरो की भूख लग रही थी, अपनी पेट की जलन को शांत करने के लिए वो किचन में घुसा और प्लेट में दाल और रोटी लेके हॉल में पड़े सोफे पर बैठ  गया और तल्लीन होके खाने लगा।

"लगता है आज खाना रमन्ना ने बनाया है , काफी टेस्टी बना है " सुरजीत ने सोचा। "अगर ये दोनों ना होते तो खाने की कितनी दिक्कत होती, कभी जोगी कभी रमन्ना खाना बना लेते हैं नहीं तो मुझे तो कुछ भी नहीं आता बनाना " सोचता हुआ सुरजीत मुस्कुरा उठा।

खाना खाके सुरजीत किचन में गया और अपनी प्लेट सिंक में रख दी।

सिंक में उसने देखा की सिंक खाली पड़ा था सिर्फ उसी की प्लेट अब वहां थी। उसे ये बात काफी अजीब लगी क्योंकि जोगी और रमन्ना की प्लेट्स वहां नहीं थी जो की होनी चाहिए थी।

वे लोग सुबह उठ के सारे बर्तन साफ़ कर के ऑफिस के लिए निकलते थे इसलिए सुरजीत थोड़ा चौंका क्योंकि उसके लिए ये मानना थोड़ा मुश्किल था की उन दोनों ने सोने से पहले अपने बर्तन साफ़ कर के रखे हों।

सुरजीत इसके बारे में ज्यादा न सोचते हुए किचन की लाइट बंद करने के लिए स्विचबोर्ड की तरफ बढ़ गया। किचन का स्विचबोर्ड स्लैब से ऊपर दिवार में लगा हुआ था और उसके बिलकुल सामने सिंक था जहाँ सुरजीत ने अभी अभी अपनी प्लेट रखी थी।

वो चलता हुआ स्लैब की तरफ आया जिसकी दिवार के ऊपर स्विचबोर्ड लगा हुआ था। स्लैब की चौड़ाई करीब २ फुट के आसपास थी। जब सुरजीत ने लाइट बंद करने के लिए स्विच बोर्ड पर हाथ लगाया तो उसे कुछ अजीब सा लगा। उसे लगा कि  रोज की अपेक्षा आज स्विचबोर्ड थोड़ा पास था।

उसने बिना लाइट बंद किये अपना हाथ वापस खींच लिया और ध्यान से स्विचबोर्ड देखना लगा।

वो सोचने लगा कि पिछले करीब १ साल से वो यहाँ रह रहे हैं इसलिए स्विचबोर्ड की दूरी का उसे पक्का पता था लेकिन आज उसे ऐसा लग रहा था की किचन की स्लैब की चौड़ाई कुछ हलकी सी कम हो गयी है। लेकिन वो पक्के तौर पर ऐसा नहीं कह सकता था उसे लगा कि  ये सिर्फ उसे "वहम" सा हुआ है।

"लगता है मैँ  कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूँ , भला चौड़ाई कैसे कम  हो जाएगी स्लैब की " सुरजीत ने बड़बड़ाते हुए सर को झटका सा दिया और लाइट बंद कर दी। 

अब सिर्फ सुरजीत के कमरे का जीरो वाट का बल्ब जल रहा था। सुरजीत हॉल में से होता हुआ अपने कमरे में घुस गया और पलंग पर पसर कर रजाई तान के लेट गया , थोड़ी ही देर बाद उसके खर्राटों की आवाज़ कमरे में गूजने लगी.

काश उसे पता होता कि आने वाला दिन उसके  सबसे भयावह सपने से भी ज्यादा भयावह होगा।


Chapter 2

ट्रिनननननन !!!!!!!!

अलार्म की तेज़ आवाज़ से सुरजीत की नींद खुल गयी। उसने घडी में देखा सुबह के साढ़े ६ बज रहे थे।

वो बिस्तर से उठा और  दूसरे कमरे में गया। वहां उसने एक बिस्तर पे रमन्ना को सोते हुए देखा।

"अरे जोगी कहाँ गया , वो तो मेरे साथ ही सुबह जॉगिंग पर जाता है " सुरजीत सोचते हुए वापस अपने कमरे में आ गया।

फ्रेश होके सुरजीत ने  अपना जॉगिंग सूट पहना और घर से बाहर निकल गया। करीब १ घंटा पास के पार्क में जॉगिंग करने के बाद जब वो घर में घुसा तो सुबह के 8 बज रहे थे। रमन्ना उठ चुका था और किचन में चाय बना रहा था।

"भाई जरा चाय में थोड़ी काली मिर्च दाल देना, गला थोड़ा ख़राब लग रहा है। " सुरजीत हॉल में पड़े हुए सोफे पर बैठता हुआ बोला।

"हाँ मैंने डाल दी है काली मिर्च मुझे भी गला ख़राब लग रहा है , मौसम कुछ ऐसा ही चल रहा है। " रमन्ना बोला।

"और ये जोगिन्दर कहाँ है अपना? कल से दिखाई ही नहीं दिया बिलकुल। "

"तू फिर शुरू हो गया सुरजीत " रमन्ना घूरते हुए बोला।

"क्या मतलब"?

"मतलब ये कि तूने कल से क्या जोगी जोगिन्दर लगा रखा है ?"

"मैं तो सिर्फ ये पूछ रहा हूँ की जोगी कहाँ है ?"

"और वही में बोल रहा हूँ कि किस जोगी की बात कर रहा है तू ? है कौन ये जोगी जोगिन्दर ?"

सुरजीत की समझ नहीं आया कि वो क्या बोले।

"यार अगर तू मज़ाक़ कर रहा है तो अब काफी हो गया अब खत्म कर बस " सुरजीत कलप के बोला। "कल से पूछ रहा हूँ कि जोगी कहाँ गायब है और तू मज़ाक करने में ही लगा हुआ है तब से "

रमन्ना दोनों हाथो में 1- 1 चाय का  कप पकडे सुरजीत के पास ही सोफे पर बैठ गया और बोला "भाई तू किस जोगी की बात कर रहा है मुझे समझ नहीं आ रहा है।"

अब सुरजीत चिल्ला के बोला "मैं उस जोगी की बात कर रहा हूँ जो हमारा रूममेट है पिछले 1 साल से।"

रमन्ना ने थोड़ी हैरानी से सुरजीत की तरफ देखा और फिर धीरे से बोला "हमारा कोई और रूममेट नहीं है सुरजीते , हम दोनों ही पिछले 1 साल से यहाँ रह रहे हैं।"

सुरजीत ने चौंक के रमन्ना की तरफ देखा और फिर से ध्यान से उसके चहरे को  देखता रहा। रमन्ना के चेहरे पर ऐसे  कोई भाव नहीं थे जिससे ऐसा लगे कि वो मज़ाक़ कर रहा हो , वो बिलकुल गम्भीर दिखाई दे रहा था। और प्रतिक्रिया में रमन्ना भी उसका चेहरा देख रहा था और उसे भी यही लगा की सुरजीत बिलकुल मज़ाक नहीं कर रहा था।

"तू ठीक तो है न सुरजीत ? " रमन्ना थोड़ा चिंतातुर स्वर में बोला।

"आं........ हाँ मैं ठीक हूँ " सुरजीत समझ नहीं पा रहा था कि वो क्या बोले और उसे ये भी समझ नहीं आ रहा था कि रमन्ना क्या बोल रहा है।

जिस जोगी के साथ वो लोग पिछले 1 साल से रह रहे थे रमन्ना उसी के अस्तित्व को सिरे से नकार रहा था।

और सुरजीत को ये विश्वास हो गया था कि रमन्ना मज़ाक़ नहीं कर रहा था। तो फिर रमन्ना ऐसा क्यों कर रहा था ? क्या सच में ही रमन्ना को जोगी याद नहीं आ रहा था। या रमन्ना काफी बढ़िया अभिनय कर रहा था उसे चिढ़ाने के लिए ?

सुरजीत को नहीं लगा कि रमन्ना ऐसी हरकत कर सकता है उसे चिढ़ाने के लिए क्योंकि उसका व्यक्तित्व गम्भीर किस्म का था और वो मज़ाक़ या हंसी ठिठोली वाले माहौल में ज्यादा इन्वॉल्व नहीं होता था।

सुरजीत बिना कुछ कहे उठा और अपने कमरे में घुस गया। वैसे भी आज सैटरडे था और उसके ऑफिस की छुट्टी थी इसलिए वो आराम से अपने पलंग पर लेट गया। लेकिन उसके दिमाग में जोरो का भूचाल आया हुआ था कि रमन्ना ऐसा क्यों कर रहा है। सोचते सोचते उसके सर में दर्द होने लगा तेज़ी से।

"लगता है माइग्रेन फिर से शुरू हो गया है " सुरजीत बड़बड़ाया। और उठकर  pain killer tablet लेने के लिए अपनी almirah खोली लेकिन उसे अपनी टेबलेट का बॉक्स कहीं नहीं दिखाई दिया।

"रमन्ना तूने मेरा टेबलेट्स का बॉक्स कहीं देखा है ?" सुरजीत ने चिल्ला के रमन्ना से पूछा।

रमन्ना कमरे में घुसता हुआ बोला "नहीं मैंने तो कहीं नहीं देखा।"

"पता नहीं कहाँ चला गया" सुरजीत परेशां सा  होते हुए बोला।  उसके सर का दर्द बढ़ता ही जा रहा था।

"मैं पास के मेडिकल स्टोर से अपनी टेबलेट लेके आता हूँ " कहता हुआ सुरजीत तेज़ी से घर के बाहर निकल गया।

ये लोग एक बिल्डिंग में दूसरे फ्लोर पर रहते थे। उस बिल्डिंग में टोटल 3 फ्लोर्स थे और हर फ्लोर पर 3 फ्लैट्स। सुरजीत का फ्लैट बीच में था, उसके अगल बगल 2  फ्लैट्स और थे जिसमे से एक खाली पड़ा था और एक में कोई बैंक मैनेजर रहता था अकेला।

फ्लैट से बहार निकलते ही एक कॉमन गैलरी थी जो कि करीब 5 फीट चौड़ी थी, और बाहर निकलते ही गैलरी में पहुंचकर सीधे हाथ की तरफ कुछ चलने पर सीढ़ियां आ जाती थी।

आज सुरजीत जैसे ही अपने फ्लैट से निकल कर गैलरी में पंहुचा तो उसे कुछ अजीब सा लगा। उसे समझ नहीं आया कि क्या अजीब था लेकिन उसे पक्का कुछ बदला बदला सा लगा। उसने अपनी सोच को झटका और सीढयों की तरफ चल दिया।

सीढ़ियां उतरते हुए सुरजीत सोचने लगा कि अभी परसो श्याम ही तो वो और जोगी बाइक पर बैठकर कितना घूमे थे। कल्पिनगर की शुक्रवार मार्किट में शॉपिंग की थी।

उसके बाद दोनों ने कलपौली के रास्ते पर खूब बाइक दौड़ाई थी। कलपौली वहां से करीब 8 km दूर एक रास्ता था जहाँ पर काफी मात्रा में पेड़ और हरियाली थी और थोड़ी थोड़ी दूर पर छोटे छोटे पहाड़ थे। सुरजीत जब शहर की दौड़ भाग से चिड़चिड़ा जाता था तो कभी कभार बाइक लेके वहीँ निकल लेता था। 

और अब कल से जोगी का कुछ पता नहीं था और रमन्ना का अजीब व्यवहार भी उसे असमंजस में डाल रहा था। सोचते सोचते उसने मेडिकल स्टोर से अपनी टेबलेट ली और वापस अपने फ्लैट की तरफ आने लगा।

आश्चर्यजनक रूप से उसका सर का दर्द अपने आप ही काफी कम हो गया था अब। वो सीढ़ियां चढ़ के जैसे ही अपने फ्लैट के दरवाज़े पर पंहुचा अचानक ही गोली की तरह एक विचार उसके जहन में कौंधा।

"कल उन्होंने मार्किट में शॉपिंग की थी और जोगी ने कुछ कपडे भी ख़रीदे थे वहां से। वो कपड़े जरूर उनकी अलमीरा में ही होंगे।"

सुरजीत भागता हुआ  रमन्ना के कमरे में पंहुचा और अलमीरा में जोगी के कपडे ढूँढ़ने लगा। रमन्ना वहीँ पलंग  पर लेटा हुआ ध्यान से सुरजीत को देख रहा था। काफी ढूँढ़ने पर  भी सुरजीत को वो कपडे नहीं दिखाई दिए जो उन्होंने साथ में खरीदे थे।

"क्या ढूंढ रहा है इतनी देर से ?" रमन्ना  ने कहा।

"कुछ नहीं।" सुरजीत ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और कमरे से बाहर निकल गया।

फ्लैट से बाहर आके सुरजीत गैलरी में रेलिंग के सहारे खड़ा होके नीचे देखते हुए सोचने लगा की अचानक वो रेलिंग से झटक कर दूर हुआ और ध्यान से रेलिंग और गैलरी को देखने लगा।

वो समझ गया की जब वो मेडिकल स्टोर के लिए निकला था तो उसे क्या अजीब लगा था। वो दौड़ के फ्लैट के अंदर पंहुचा और हॉल को ध्यान से देखने लगा, फिर भागता सा हुआ रमन्ना के कमरे में पंहुचा और हैरानी से पूरे कमरे को देखता रहा।

फिर उसी गति से अपने कमरे में पंहुचा और वहां भी घबराया हुआ सा कमरे को देखने लगा। वो पूरा पसीने पसीने हो गया था। सुरजीत हॉल में आया तो देखा रमन्ना हॉल में ही खड़ा हुआ था।

"क्या हुआ सुरजीत तू ठीक तो है ना ? कल से देख रहा हूँ तू कुछ अजीब सा व्यवहार कर रहा है। कुछ परेशानी है तो मुझे बता।" रमन्ना एक सांस में ही कहता चला गया।

लेकिन सुरजीत ने जैसे उसकी कोई बात सुनी ही नहीं थी। वो समझ गया था कि उसे क्या अजीब लग रहा था सुबह से।

बाहर की गैलरी 5 फुट की जगह करीब 3 फुट की हो गयी थी। फ्लैट का हॉल और सारे कमरे भी पहले की अपेक्षा कम  चौड़े रह गए थे। ये सब पहले से थोड़े छोटे हो गए थे। यानि कि कल रात जो उसे स्विचबोर्ड पास होने का वहम हुआ था वो सिर्फ वहम नहीं था। किचन भी पहले से थोड़ी छोटी हो गयी थी।

पूरा फ्लैट और गैलरी पहले से थोड़े छोटे हो गए थे !!!!!! पर ये सब क्यों और कैसे हो रहा था ? और जोगी कहाँ गया था ? रमन्ना जोगी के अस्तित्व को क्यों नहीं मान रहा था ? क्या उसका दिमाग उसके साथ कोई खेल खेल रहा था या उसे कोई दिमागी बीमारी हो गयी थी ?

इन सब सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं था। वो बस घबराया हुआ हॉल में पड़े सोफे पर ढेर हो गया।


Chapter 3

सुरजीत को ऐसा लगा जैसे उसे कोई आवाज़ दे रहा है। उन आवाज़ों से वो अपनी सोचो के भंवर से बाहर निकला और देखा कि रमन्ना उसके बगल में सोफे पर बैठा उसे आवाज़ दे रहा था।

"सुरजीत तू ठीक है ना ? क्या हो गया है तुझे कुछ तो बता।" रमन्ना ने  लगभग चिल्लाते हुए कहा

"रमन्ना तू विश्वास नहीं करेगा मैं जो भी बोलूँगा।"

"तू बता तो सही आखिर बात क्या है ?"

"क्या तुझे सच में जोगी याद नहीं ? देख रमन्ना सच सच बोलना मैं सच में बहुत डरा हुआ महसूस कर रहा हूँ।"

रमन्ना ने सुरजीत के कंधे पर हाथ रखा और कहा " मैं सच बोल रहा हूँ मेरे भाई, यहाँ कोई जोगी नहीं है और जब से तूने जोगी के बारे में पूछना शुरू किया है मैं खुद काफी घबरा गया हूँ तेरी हालत देख कर।"

"अच्छा ये बता तुझे कुछ बदला बदला नहीं लग रहा है ? जैसे कि फ्लैट थोड़ा छोटा हो गया है ऐसा महसूस नहीं हो रहा है तुझे ? "

"सुरजीत तो ये सब क्या बोल रहा है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। "

और फिर सुरजीत ने रमन्ना को सब कुछ विस्तार में बताया जो भी वो कल से महसूस कर रहा था। सब कुछ सुनने के बाद रमन्ना थोड़ा चिंतित दिखाई देने लगा।

"देख सुरजीत, न तो कोई जोगी यहाँ कभी था और ना ही इस फ्लैट में कुछ बदलाव आया है। ये सब तेरे दिमाग का वहम है बस और कुछ नहीं। " कहने को तो कह दिया रमन्ना ने लेकिन अंदर से वो सब सुन के और सुरजीत की हालत देख के वो भी घबरा गया था।

सुरजीत थोड़ी देर बिना कुछ बोले शांत बैठा रहा। वो सोचने लगा कि हो न हो ये सब जो हो रहा है उसका सम्बन्ध जोगी के गायब होने से जरूर है।

और रमन्ना पर भी इस अजीबोगरीब वातावरण का असर हुआ है तभी उसे जोगी याद नहीं आ रहा है। उसे लगने लगा कि जरूर इस फ्लैट में ही कुछ चक्कर है जिसके कारन ये सब हो रहा है। उसे इस फ्लैट से बाहर निकल के इसके बारे में पता लगने की कोशिश करनी होगी।

"सुरजीत ओ सुरजीते !!! "

रमन्ना की आवाज़ सुनते ही वो अपने सोच की तन्द्रा से बाहर निकला। 

"मैं जरा बाहर होके आता हूँ।" सुरजीत बोला।

"लेकिन कहाँ बाहर?"

"बस थोड़ा बाहर घूम के आता हूँ , फ्लैट के अंदर बैठे बैठे घबराहट हो रही है। "

"सुरजीत मुझे लगता है कि तुझे आराम करना चाहिए और शायद हमें  ...... "

"क्या ?"

"नहीं मतलब अगर तुझे तबियत ठीक नहीं लग रही है तो शायद हम डॉक्टर के पास चल सकते हैं। "

"क्यों , तुझे लग रहा है कि मैं पागल हो गया हूँ ? "

"नहीं नहीं , लेकिन कभी कभी स्ट्रेस की वजह से भी ऐसा हो  जाता है। तो अगर एक बार डॉक्टर से मिल लेंगे तो  ........  "

"मुझे किसी डॉक्टर से नहीं मिलना और मैं बिलकुल ठीक हूँ। मैं बाहर होके आता हूँ। " और सुरजीत हवा की तरह तेज़ी से फ्लैट के बाहर निकल गया।


Chapter 4

अपने फ्लैट से बाहर निकल के सुरजीत गैलरी में पहुंच के सीढ़ियों की तरफ चलने लगा।

"गैलरी पहले से और छोटी हो चुकी थी। " सुरजीत ने सोचा।

चलते चलते वो अपने बगल वाले फ्लैट के सामने ठिठक कर खड़ा हो गया। फ्लैट का दरवाजा बंद था लेकिन बाहर से कोई लॉक नहीं लगा था।

"इसका मतलब वो बैंक मैनेजर अंदर ही होगा। ये बैंक वाला भी कुछ 3 महीने पहले ही यहाँ शिफ्ट हुआ है। इसने कभी न कभी तो जोगी को देखा होगा, इसी से पूछ के देखता हूँ एक बार। " ये सोच के सुरजीत ने उसके फ्लैट की घंटी पर हाथ रख दिया।

घंटी बजने के कुछ सेकंड्स बाद ही दरवाजा खुल गया। दरवाजे पर जो आदमी प्रगट हुआ वो करीब 45 - 50 साल के आसपास का होगा। उसने एक मोटे फ्रेम वाला चश्मा लगा रखा था। सुरजीत ने उसे हमेशा कभी कभार दूर से ही देखा था। आज बिलकुल करीब से जब देखा तो लगा कि उसने उस आदमी को पहले भी कहीं देखा है, लेकिन याद नहीं आया कहाँ।

"कुछ बोलोगे या बस खड़े रहने का इरादा है ?" वो आदमी बोला।

"जी  ...... जी वो  ..... आपका नाम क्या है ? सुरजीत सकपकाते हुए  बोला।

"तो मतलब सैटरडे की छुट्टी वाले दिन सुबह 11. 30 बजे तुम मुझसे मेरा नाम पूछने मेरे फ्लैट पर आए हो ? "

"जी नहीं , वो क्या है कि मुझे आपसे कुछ पूछना था।"

"वो तो पूछ ही रहे हो , मेरा नाम।"

"नहीं नहीं , नाम नहीं। मुझे कुछ जानकारी लेनी थी। "

सुरजीत समझ गया था कि सामने वाला कुछ अखड्ड स्वभाव का है। लेकिन हैरानी की बात थी कि उसे उसका चेहरा और बात  करने का तरीका काफी  जाना पहचाना लग रहा था।

बैंक मैनेजर ने थोड़ा ध्यान से सुरजीत की तरफ देखा और बोला  "कुछ परेशान लग रहे हो ? आओ अंदर आ जाओ अंदर  बैठ के बात करते हैं। "

सुरजीत थोड़ा हिचकिचाते हुए अंदर आया। फ्लैट के अंदर का नक्शा बिलकुल उसके फ्लैट जैसा ही था। और फ्लैट का साइज भी उसके फ्लैट के करंट साइज के बराबर ही था। अब उसे ये नहीं पता था कि ये फ्लैट पहले से ही इसी साइज का था या इसका हाल भी उसके फ्लैट जैसे ही हो रहा था।

"दलबीर बरनाला "

" जी ? " सुरजीत चौंका।

"मेरा नाम। दलबीर सिंह बरनाला।" बैंक मैनेजर बोला।

"ओह। "

"बैठो। आराम से बैठ जाओ। "

सुरजीत वहीँ रखे एक फैंसी से सोफे पर बैठ गया। फ्लैट का सारा सामान काफी फैंसी वाला मालूम पड़ता था। और हॉल के हर कोने में बढ़िया शोपीस रखे हुए थे।

फ्लैट भी काफी साफ़ नज़र आ रहा था जो की सुरजीत के लिए थोड़ी हैरानी का विषय था क्योंकि मैनेजर वहां अकेला रहता था और एक अकेले पुरुष का घर इतना साफ़ और इतना सजावट से हो ये बात सुरजीत को थोड़ी हैरानी में डाल रही थी।

सुरजीत को ये आभास तो हो गया था कि दलबीर काफी सफाई पसंद और करीने से रहने वाला इंसान था। और थोड़ा अक्खड़ भी।

दलबीर सुरजीत के सामने पड़ी एक आरामदायक कुर्सी पर बैठ गया और अपना चश्मा आँखो से हटाकर अपने रुमाल से साफ़ करने लगा।

सुरजीत उसके चश्मे साफ़ होने का इंतज़ार करने लगा। दलबीर अपना चश्मा साफ़ करने में इस तरह खोया हुआ था कि सुरजीत को लगा कि वो ये भूल ही गया है कि सुरजीत उसके सामने बैठा हुआ है। आखिर सुरजीत ने खुद ही बात शूरू की।

"जी मेरा नाम सुरजीत है। "

"बहुत अच्छा।" दलबीर ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, उसने  चश्मा वापस अपनी आँखों पर लगाया और कुर्सी पर पीठ टिकाकर आराम से बैठ गया।

" मैं आपके बगल वाले फ्लैट में ही रहता हूँ। "

"मालूम है।"

"वैसे हम 3 लोग हैं जो साथ में रहते हैं उस फ्लैट में। "

"वो भी मालूम है। "

"तो इसका मतलब आपने जोगी को देखा है हमारे साथ ? " सुरजीत उत्साहित सा होके चिल्ला के बोला।

"मतलब ? "

"आपने अभी अभी बोला कि आप जानते हैं आपके बगल वाले फ्लैट में 3  लोग रहते हैं  ? "

"बरखुरदार तुम जानना क्या चाहते हो आखिर ? " दलबीर थोड़ा चिढ के बोला।

"मैं ये कहना चाहता हूँ कि आपको कैसे पता हम 3 लोग हैं जो यहाँ रहते हैं। हो सकता है हम 2 ही हों और जो तीसरा आपने देखा हो वो कोई दोस्त हो हमारा जो कभी कभार हमारे फ्लैट पर आ गया हो। "

"मुझे पक्की खबर थी कि तुम 3 लोग रहते हो यहाँ किराए से। मैं जहाँ भी रहने जाता हूँ उसके आसपास की खबर रखता हूँ। "

"लेकिन फिर भी किसी ने तो बताया होगा यहाँ 3 लोग रहते हैं ?"

"हाँ।"

"किसने ?"

"जयकांत ने "

"जयकांत ?"

"हाँ , जयकांत त्रिपाठी ने। "

 जयकांत त्रिपाठी !!! उसका मकान मालिक !!! कितना मूर्ख था वो !! वो जयकांत त्रिपाठी से भी तो पूछ सकता था ये बात। उसे तो पक्का पता ही होगा कि जोगी हमारे  साथ ही रहता था। और दलबीर भी इसी बात की तस्दीक कर रहा है। इसका मतलब रमन्ना को या तो जोगी सच में याद नहीं या फिर वो झूठ बोल रहा है।

"बरखुरदार तुम आखिर पूछना क्या चाहते हो ? "

"आँ  ...... नहीं बस और कुछ नहीं पूछना। " सुरजीत बोलता हुआ सोफे से उठ गया।

दलबीर थोड़ा चौंका और फिर वो भी कुर्सी से उठ गया। सुरजीत ने दलबीर को धन्यवाद दिया और वापस अपने फ्लैट पर आया।

फ्लैट पर देखा तो ताला लटका हुआ था। उन लोगो की एक कॉमन जगह थी जहाँ पर अगर कोई ताला लगा के जाता था तो चाभी वहीँ रख देता था। सुरजीत ने देखा चाभी वहीँ रखी  हुई थी इसका मलतब रमन्ना ताला लगा के कहीं गया था। अचानक उसने अपने जेब से अपना मोबाइल निकाला और उसमे जोगी की फोटोज ढूँढ़ने लगा लेकिन उसे एक भी फोटो नहीं मिली।

हैरान सा सुरजीत गैलरी में ही खड़ा था कि उसकी नज़र गैलरी पर पड़ी और उसके होश फाख्ता हो गए। गैलरी अब 5 फुट  की जगह 3 फुट की रह गयी थी। सुरजीत की चीख निकलते निकलते बची।

वो डर के सीढ़ियों की तरफ भागा और सीढ़ियों से नीचे उतरता हुआ बाहर रोड पर आ गया। सुरजीत जैसे ही रोड पर पंहुचा और उसका ध्यान जैसे ही सामने की ओर गया वो अपनी चीख रोक नहीं पाया। उसने पाया कि जो main रोड थी वो भी चौड़ाई में छोटी हो गयी थी। सड़क के पार जो मार्किट था वो पूरा मार्किट पास आ गया था। उनमे जो दुकाने थी वो भी सिकुड़ के थोड़ी छोटी हो गयी थी।

उसने धीरे धीरे चारो तरफ निगाहें दौड़ाई और देखा कि हर जगह सिकुड़ के थोड़ी छोटी हो गयी है। यानि कि ये असम्भव सी चीज़ सिर्फ उसके फ्लैट में नहीं बल्कि पूरे शहर में हो रही है , और क्या पता पूरी दुनिया में !!!!! इस सोच ने सुरजीत के होश उड़ा दिए।

उसकी समझ नहीं आ रहा था ये सब क्यों और कैसे हो रहा है। और सबसे बड़ी बात ये कि ये सब सिर्फ उसे ही पता क्यों चल रहा था ? क्या और किसी को ये फर्क दिखाई नहीं दे रहा था ? सुरजीत को पक्के तौर पर ऐसा लगने लगा था कि जोगी का गायब होना और ये सब भूतिया चीज़ें होने के पीछे कोई एक ही कारण है।

उसे अब जोगी को ढूँढना ही होगा। जल्दी से जल्दी। इससे पहले कि सब कुछ सिकुड़ के छोटा होता जाये और इतना सिकुड़ जाये कि   ........ इससे आगे सुरजीत की सोचने की हिम्मत नहीं हुई।

वो जल्दी से जयकांत त्रिपाठी के घर की तरफ चल पड़ा ये सोच के कि क्या पता जयकांत से ही जोगी के बारे में कुछ जानकारी मिल जाये।

 लेकिन सुरजीत को शायद ये नहीं मालूम था कि जयकांत से मिलने के बाद ये गुत्थी सुलझने की जगह और ज्यादा उलझ जाएगी ! ! !


To Be Continued...

Final two chapters — coming next week.